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ईश्वर की व्यापकता और मेरी सोंच -2

Core Of The Heart
Core Of The Heart
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जो पलायित हैं ,
जीविकोपार्जन को बाहर जाते हैं |
अपने लोग -अपनी माटी को ,
सदा देखने को ललचाते हैं |
ऐसे व्यस्त लोगों के परिजनों के साथ,
तू फ़ुरसत के कुछ पल तो नहीं ?

जो अकाल-ग्रसित हैं ,
जिन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं है ।
प्यास रह-रह के सताती है उन्हें ,
और एक चुल्लू पानी तक करीब नहीं है ।
ऐसे क्षुधा-त्रस्त लोगों को प्राप्त,
तू कहीं अन्न -जल तो नहीं ?

जो निःसंतान हैं,
जिन्हें बुढापे में सहारे की चिंता सताती है ।
जिनका अपना कोई वारिस नहीं है,
और दुनिया जिन्हें बाँझ बताती है ।
ऐसे दुखी जनों के गोद में ,
तू शिशु चंचल तो नहीं ?

जो दुर्जन थे ,
बुरे कर्म किया करते थे ।
पर अब किये का पछतावा है उन्हें ,
जो इंसानों के रक्त से अपना घर भरते थे ।
ऐसे प्रायश्चितरत लोगों के ,
तू नेत्र सजल तो नहीं ?

जो तपस्वी हैं,
नित तप में लीन रहते हैं ।
नाम लेते हैं अनगिनत तेरे ,
और इस क्रिया को जप कहते हैं ।
ऐसे सन्यासी तेरे खोजियों को क्या पता ,
तू सबके शरीर का हलचल तो नहीं ?

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