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हम सब जानते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापक है । लेकिन फिर भी हम उसे खोजने की कोशिश करते हैं । तो चलिए देखते हैं वो किन लोगों को कहाँ मिलता है ।
ऐ मेरे ईश्वर,
जो कर्म में विश्वास करते हैं ,
अहर्निष कर्म में लीन रहते हैं ,
कर्म ही पूजा है जिनका ,
कर्म में सब कुछ ही सहते हैं ,
ऐसे कर्म योगियों का ,
तू कहीं कर्म फल तो नहीं ।
जो बेघर हैं,
खुले आकाश तले सोते हैं ,
ठिठुरते हैं सर्दियों में, बरसात में भीगते हैं ,
और गर्मियों में रोते हैं ,
ऐसे गृह विहीन लोगों के
तू सपनों का महल तो नहीं ।
जो वनवासी हैं ,
नित वन में विचरते हैं ,
सहते हैं अत्याचार मानवों के ,
अपने घर को उजड़ता हुआ देखते हैं ,
ऐसे बेजुबान प्राणियों का
तू हरा – भरा जंगल तो नहीं ।
जो अवसाद ग्रस्त हैं ,
सदा ही चिंतित रहते हैं ,
सुख को भोगने से उन्हें डर लगता है ,
सदा दुःख के प्रकोप सहते हैं ,
ऐसे बेचारे लोगों के परिजनों का ,
तू कहीं कुशल – मंगल तो नहीं ।
जो अकेले हैं ,
जिनका यहाँ कोई नहीं है
जो सदा अपनों की तलाश करते हैं ,
जिन्हें लगता है उनका कोई तो कहीं है
ऐसे एकाकी लोगों के
तू माँ का आँचल तो नहीं ।
क्रमशः
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