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केरोसिन, पेट्रोल, बिजली आदि से लगी आग तो जल्दी बूझ सकती है और उनसे हुई नुकसानों की भरपाई भी हो सकती है | पर शराब से जो आग लगती है उसे बुझाना और उसके नुकसानों की भरपाई करना बहुत ही मुश्किल है | ये आग आदमी खुद ही लगाता है और खुद के ही घर में | वो उस आग में खुद जलता है और सबको झुलसाता भी है | आज उसी आग में झुलसी हुई एक बच्ची आग लगाने वाले से कुछ पूछना चाहती है | और वो आग लगाने वाले उसी के पिताजी हैं |
मेरे पूज्य पिताजी ,
क्यों आप अशांति , कलह घर लाते हैं |
क्यों देर रात गए ,
शराब पीकर आते हैं ||
क्यों पूरे नहीं होते
माँ के ख्वाब ?
क्यों नहीं मिलते मुझे ,
कलम और किताब ?
क्यों दूध के बिना होती है ,
मुन्ने की हालत खराब ?
क्यों सबसे पहले आती है ,
घर में आपकी शराब ?
क्यों कभी रात में माँ सिसक – सिसक रोती है ?
और क्यों कभी-कभी उसके जेवर बिकते हैं ?
पर आपके हाथ में डंडा , होठों पे गाली ,
और आप हमे डांटते और मारते नहीं थकते हैं ?
शराब से जो बीमारियाँ होंगी तो ,
कैसे होगा आपका इलाज ?
पहनने , रहने के लाले पड़े हैं ,
घर में कम ही बचा है अनाज |
क्यों बार – बार कसम खाकर भी,
आप नहीं सुधरते हैं ?
शराबी तो कुत्ते के दुम होते हैं ,
सीधे तो रह ही नहीं सकते हैं |
आप क्या चाहते हैं,
की मैं अनाथ हो जाऊं ?
पढना – लिखना छोड़कर ,
कचड़ा बीनने वालों के साथ हो जाऊं ?
आपसे बस अब एक ही बात कहना चाहती हूँ |
अभी आपके पास समय है ,
आप सुधर जाइए |
शराब है प्राणनाशक , गृह्नाशक ,
आप इससे मुकर जाइए ||
शराब पीने वालों , आप एक बार सोंचिये कि कहीं आपके बच्चों के मन में भी ये सवाल तो नहीं हैं ?
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