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एक सच्चा हमसफ़र !

Core Of The Heart
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तन्हाईयों से उबकर मैं ,
कर रहा था जिंदगी से किनारा |
तलाश थी एक हमसफ़र की ,
जो बनता मेरा सहारा ||

ईश्वर से भी तो ,
कई बार गुजारिश की थी |
मुझे भी कोई मिल जाये ,
कुछ ऐसे सिफारिश की थी ||

एक दफा बैठकर सोंच रहा था ,
तन्हाई दूर करने के उपाय |
कौन समझे और कौन समझाए ,
कुछ सूझ नहीं रहा, हाय ||

तभी अचानक ज़ेहन में एक बात आई ,
कोई तो है निःस्वार्थ , जो चाहता है तेरी भलाई |
वो ही है जो तेरे खाने पर ही खाती है ,
तेरे सोने के बाद तेरे पास ही सो जाती है ||

जब तू अबोध था , पूरा अनजान था,
कोई तो था जो तेरे लिए परेशान था |
कैसे तू उस देवी के उपकार भूल गया ,
कैसे तू इस झूठ के फंदों में झूल गया ||

बोल किसे तेरी इतनी फ़िकर है ,
तेरी ही ख़ुशी उसकी मंजिल और डगर है |
रे मूर्ख ! तू उसे कोटि – कोटि नमन कर ,
वो ही है तेरी शुभचिंतक हमसफ़र ||

भगवान को भी कभी,
उसका प्यार न मिल पाता है |
वो भी उस एहसास को पाने ,
धरा पर उतर आता है ||

जा उसके श्री चरणों पर सर रख कर ,
खुद को बोझ से हल्का कर ले |
वो तब भी यही कहेगी ,
कि, बेटा तू अपने मन का कर ले ||

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